/दबंगई पर सुप्रीम कोर्ट का रोडब्लॉक: बुल्डोजर की स्पीड में लगी न्याय की नकेल!
बुल्डोजर

दबंगई पर सुप्रीम कोर्ट का रोडब्लॉक: बुल्डोजर की स्पीड में लगी न्याय की नकेल!

बुल्डोजर जस्टिस नाम फैंसी भी था और दबंग भी। तो क्या हुआ कि एक गुनहगार (दोषी या संदिग्ध) की सजा पूरे परिवार को मिलती थी? सूबे में कानून और सरकार का दबदबा बनाने में काफी उपयोगी रहा। लिहाजा यूपी के इस दबंग मॉडल को देश के अन्य राज्यों ने भी अपनाना शुरू तो कर ही दिया था। सच पूछे तो लोगों में भी इसकी स्वीकारिता बढ़ चली थी। देश के युवा और उनका भविष्य जिस पर बेरोज़गारी का काला साया एकदम खूबसूरती से छाया हुआ है। उनके लिए ये मॉडल मनमोहक भी था और टाइम पास भी, बस शर्त यह थी कि टूटने वाला घर उनमें से किसी का अपना ना हो। लेकिन समय और पीड़ितों की बढ़ते दर्द के कारण सुप्रीम कोर्ट ने इसका संज्ञान लिया और अब इस पर अपना फैसला सुनाया है।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने “बुल्डोजर न्याय” की प्रथा को असंवैधानिक घोषित किया है। इस संदर्भ में प्रमुख निर्देश निम्नलिखित हैं:

1. न्यायिक प्रक्रिया: किसी भी संपत्ति को बिना 15 दिनों के नोटिस के ध्वस्त नहीं किया जा सकता। इस नोटिस में उल्लंघनों का विवरण होना चाहिए और मालिक को उत्तर देने का अवसर दिया जाना चाहिए।

2. न्यायिक निगरानी: कार्यपालिका खुद को न्यायाधीश के रूप में कार्य नहीं कर सकती। ध्वस्तीकरण कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए ही किया जा सकता है, जिससे शक्तियों के डिवीजन होने की पुष्टि होती है।

3. अधिकारों का संरक्षण: यह स्पष्ट किया गया कि आश्रय का अधिकार मौलिक है, और परिवार के अन्य सदस्यों को सामूहिक सजा देना अस्वीकार्य है।

4. जवाबदेही: इन निर्देशों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को कानूनी परिणामों का सामना करना होगा, जिससे कानून के शासन और नागरिक अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित होगी।

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद, बुल्डोजर कार्रवाई पूरी तरह से समाप्त नहीं हुई है, लेकिन इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण शर्तें लागू की गई हैं। अब किसी भी प्रकरण में बुल्डोजर का उपयोग करने से पहले निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना होगा:

15 दिन का नोटिस: किसी भी संपत्ति को ध्वस्त करने से पहले मालिक को 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है, जिसमें उल्लंघन का विवरण दिया जाएगा.

निष्पक्ष सुनवाई: केवल आरोपी होने के कारण किसी की संपत्ति नहीं गिराई जा सकती। यह संविधान के तहत निष्पक्षता का उल्लंघन होगा।

विशेष परिस्थितियाँ: सड़क, फुटपाथ या सार्वजनिक स्थानों पर अनधिकृत कब्जे के मामलों में बुल्डोजर कार्रवाई की जा सकती है, लेकिन अन्य मामलों में कोर्ट के निर्देश लागू होंगे.इस प्रकार, बुल्डोजर कार्रवाई अब अधिक नियंत्रित और कानूनी प्रक्रिया के अधीन होगी।

सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के अनुसार, बुल्डोजर कार्रवाई निम्नलिखित स्थितियों में मान्य होगी:

अनधिकृत कब्जा: सड़क, फुटपाथ, रेलवे लाइन या जल निकाय पर अनधिकृत संरचनाओं के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.

न्यायालय का आदेश: यदि किसी संपत्ति के ध्वस्तीकरण का आदेश न्यायालय द्वारा दिया गया हो, तो बुल्डोजर कार्रवाई की जा सकती है.कानूनी प्रक्रिया का पालन: किसी भी कार्रवाई से पहले 15 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है, जिसमें उल्लंघन का विवरण और विध्वंस के कारण बताए जाएंगे।

सामाजिक सुरक्षा: यदि कोई संरचना आपराधिक गतिविधियों से जुड़ी हो और उसके मालिक लगातार फरार हो, तो कार्रवाई की जा सकती है.इन शर्तों के तहत ही बुल्डोजर कार्रवाई की जा सकती है।

सुप्रीम कोर्ट के “बुल्डोजर न्याय” पर फैसले के बाद राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ मिली-जुली रही हैं।

विपक्ष का समर्थन: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे “स्वागत योग्य राहत” बताते हुए कहा कि अब यूपी में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार रुकेंगे। उन्होंने इसे भाजपा सरकार की विफलता के प्रतीक के रूप में देखा.

कांग्रेस और अन्य दलों की प्रतिक्रिया: कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि यह निर्णय भाजपा सरकार के मनमाने कार्यों को उजागर करता है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इसे अल्पसंख्यकों के खिलाफ सामूहिक दंड से रोकने की उम्मीद जताई।

भाजपा का सावधानीपूर्वक रुख: उत्तर प्रदेश सरकार ने फैसले का स्वागत किया, यह कहते हुए कि यह संगठित अपराध को नियंत्रित करने में मदद करेगा। भाजपा नेताओं ने कहा कि यदि कोई संपत्ति अवैध है, तो उसे हटाने का अधिकार है .

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