15 लाख नौकरियों की बात नहीं करते हैं, क्योंकि देश के गृहमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि यह सिर्फ एक चुनावी जुमला था, जिसका वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है।
हाल के आंकड़ों से भारत के नौकरी बाजार में एक चिंताजनक प्रवृत्ति सामने आई है, जिसमें 900 मिलियन से अधिक कानूनी कामकाजी उम्र के व्यक्तियों में से आधे से अधिक अब रोजगार की तलाश नहीं कर रहे हैं। इसमें युवाओं की एक बड़ी संख्या, विशेष रूप से महिलाएं, शामिल हैं, जो निराशा और उपयुक्त नौकरी के अवसरों की कमी के कारण श्रम शक्ति से बाहर हो रही हैं। डेटा सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोमी (CMIE) के अनुसार, 21 मिलियन से अधिक लोग भारत की श्रम शक्ति से बाहर हो गए हैं, जिनमें से कई उपयुक्त नौकरी के अवसरों की कमी के कारण निराश हैं।
नतीजतन, कामकाजी उम्र की आधे से अधिक योग्य जनसंख्या अब रोजगार की तलाश नहीं कर रही है। महिलाओं के बीच श्रम भागीदारी दर में यह गिरावट एक महत्वपूर्ण समस्या को उजागर करती है, क्योंकि भारत अपनी युवा जनसंख्या पर आर्थिक विकास के लिए निर्भर है। इंडिया रोजगार रिपोर्ट 2024 के अनुसार, युवाओं में बेरोजगार जनसंख्या का 83% शामिल है, जो देश के रोजगार परिदृश्य को और भी चिंताजनक बनाता है।
इस खबर के विपरीत, एक उत्साहजनक बात यह है कि अब भारतीयों में अपने काम और आजीविका के प्रति जागरूकता देखने को मिल रही है। लिहाजा, चाहे सोशल मीडिया पर इंफ्लूएंसर बनना हो, छोटी उम्र में अध्यात्म प्राप्त कर गरीब और मध्यवर्ग को मोक्ष दिलाना हो, या अपने धार्मिक श्रेष्ठता को साबित करने के लिए अपने प्राणों की आहुति देना हो, इस मामले में देश सही मायनों में विश्वगुरु बन रहा है।
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